प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृत अभिलेखों के आधार पर एक जमीन तोड़ने का प्रयत्न है। अधिकतर अर्थव्यवस्था के बारे में चर्चा, समकालीन पुस्तकों के साक्ष्य के आधार पर होती रही है। वे साक्ष्य आवश्यक नहीं कि राजशासन से किसी प्रकार सम्बन्ध रखते हों। प्राचीन अभिलेख, राजशासन के रीति-नीति पर अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक रूप से ही अपने समय की स्थिति की झाँकी देते हैं। उनके आधार पर भाषा केन्द्रित अध्ययनों के द्वारा कला, इतिहास और धार्मिक प्रयोजनों से किये गये दान, यज्ञ के विषय में जो प्रामाणिक जानकारी मिलती है, इस पर विशद अध्ययन हुआ है किन्तु अभिलेखों के आधार पर अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत भूमि तथा उससे जुड़े पक्ष-कृषि व्यवस्था, सिंचाई वाणिज्य-व्यापार, राजस्व प्रबन्धन आदि के बारे में व्यवस्थित एकान्तिक अध्ययन बहुत कम हुआ है। इस दृष्टि से शोधकर्ता कमल ने बड़े परिश्रम और ईमानदारी के साथ प्रबल, तटस्थ भाव से एक अनछुये क्षेत्र का परिमापन किया है।