भारत में और हिन्दी में नारी विमर्श पर हमेशा से बड़ी-बड़ी चर्चा होती है। विद्धानों लेखकों के अपने-अपने मत होते हैं, प्रेमचंद के इस संबंध में विचारों को जानने से पहले यह आवश्यक है कि, आज के नारी विमर्श के मसीहा किस प्रकार उसकी यौन शुचिता को नष्ट करने तथा शरीर के मुक्त उपभोग में ही नारी-मुक्ति का दिया स्वप्न देख रहे हैं। भू-मंडलीकरण के इस दौर में नारी एक वस्तु बन गयी है। और उसका शरीर केन्द्र में आ गया है।