वेदों को हमारे राष्ट्र की संस्कृति माना जाता है। हमारी संस्कृति तथा रीति-रिवाज वेदों पर ही टिके हुए हैं। वेदों से ही राष्ट्र की प्रशासनिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और व्यापारिक नीतियों का आधार है जो हमें अपने पूर्वजों से अर्थात् ऋषि-मुनियों से प्राप्त है। अनेक ऋषि-महर्षियों के हाथों एवं अनेक युगों से होकर आई हुई वैदिक ज्ञान की इस विरासत के संबंध से निरुक्तकार का कथन है कि ऐसे ऋषि हुए जिन्होंने तपस्या के द्वारा वेदरूपी धर्म का साक्षात्कार किया। दोबारा उन्हीं ऋषियों ने अपने बाद के ऋषियों को, जिन्हें उक्त धर्म का साक्षात्कार नहीं हुआ है अर्थात् जो वैदिक धर्म के स्वमेय साक्षातकर्ता नहीं थे, वेदमंत्रों का उपदेश किया।’’