यू तो सामाजिक जीवन में हर इंसान सुकुनभरी जिंदगी जीना चाहता है, लेकिन अंदाजा लगाईए कि उस व्यक्ति की जिंदगी में कितनी पीड़ा होगी जिसकी हर सुबह-शाम डर में पनपती हो और इतना ही नहीं अगर किसी व्यक्ति को बिना वजह अपनों को खोना पड़े। यह न केवल चिंता का विषय है बल्कि बैठकर मंथन करने वाली बात हैं कि हम कैसे समाज, कैसे परिवेश और कैसे वातावरण में जी रहे हैं जो इंसान को उसके जीवन की सुरक्षा भी नहीं दे सकता बाकी बातें तो अलग बात हैं।