अंग्रेजों की भारत विजय के बाद पुरानी व्यवस्था में आमूल परिवर्तन का सिलसिला शुरू हुआ। नई लगान व्यवस्था ने गाँव की जमीन पर लोगों की जमाने से चली आ रही मिल्कियत खत्म कर उसकी जगह भूस्वामित्व के इन रूपों को जन्म दिया- इजारेदारी प्रथा, स्थायी बन्दोबस्त या जमींदारी प्रथा, ‘महालवाड़ी व्यवस्था’ एवं ‘रैय्यतवाड़ी व्यवस्था’। लगान व्यवस्था के अंतर्गत 1790 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने दसवर्षीय व्यवस्था को लागू किया था। यह व्यवस्था 1793 ई. में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में स्थाई रूप से लागू कर दी गई। ब्रिटिश भारत की 19 प्रतिशत भूमि पर यह व्यवस्था निश्चित कर दी गई थी। इसके बाद ‘महालवाड़ी व्यवस्था’ का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में ‘हॉल्ट मैकेंजी’ द्वारा लाया गया। सबसे पहले यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं पंजाब में लागू की गई थी। इसके अंतर्गत भूमि का लगभग 30 प्रतिशत भाग शामिल था। 1792 ई. में ‘रैय्यतवाड़ी व्यवस्था’ मद्रास के बारामहल में पहली बार लागू की गई। मद्रास में यह व्यवस्था 30 वर्षों तक लागू रही। 1835 ई. में भू-सर्वेक्षण के आधार पर इसे बम्बई में भी लागू कर दिया गया था। इस शोध-पत्र में भारत में अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों के अध्ययन पर प्रकाश डाला गया है।