वैदिक विचारधारा के अनुसार, मनुष्य की ‘‘सर्वतोभावने सुखावह’’ अवस्था का आधार स्वास्थ्य ही है। स्वास्थ्य का परिपालन करते हुए ही मनुष्य जीवन के मौलिक उद्देश्यों-पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) तथा त्रयैषणाओं (प्राणैषणा, धनैषणा एवं लोकैषणा) को प्राप्त कर सकता है। चरक संहिता में भी कहा गया है कि धर्म, अर्थ, काम अथवा मोक्ष इन चार ‘पुरुषार्थ चतुष्टय’ की प्राप्ति का मूल कारण शरीर का निरोग रहना है। हमारा शरीर एक मन्दिर है जिसमें आत्मारूप देव निवास करता है। अतः सबका कत्र्तव्य है कि शरीर के स्वास्थ्य की का हर प्रकार से रक्षा की जाए। वर्तमान समय में स्वास्थ्य की प्राप्ति में योग जो भूमिका निभा रहा है, वह किसी से छिपी नहीं है। समस्त विश्व प्रत्येक 21 मई को ‘अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाता है, जो आधुनिक समय में स्वास्थ्य प्राप्ति के एक साधन के रूप में वैश्विक स्तर पर योग की स्वीकार्यता को दर्शाता है, अर्थात् समस्त विश्व स्वास्थ्य प्राप्ति में योग के महत्व को स्वीकार कर चुका है।