राजनीति के लिए विचारधारा का होना अत्यन्त जरूरी है। बिना विचारधारा के या बिना प्रतिबद्धता के राजनीति असंभव है। अतः जब कोई साहित्यकार अपने साहित्य में समकालीन राजनीति के चित्र उतारता है उसकी कमियों या उसकी अच्छाईयों की ओर संकेत करता है तो इसका मतलब यह हुआ कि वह भी कहीं न कहीं प्रतिबद्ध जरूर है क्योंकि बिना कोई मापदण्ड अपनाए वह अच्छाई या बुराई का फैसला नहीं कर सकता। इस विषय में स्वयं डॉ. शिवप्रसाद सिंह का मानना है कि “आज से कुछ वर्ष पहले तक, जब साहित्यकार की स्वतन्त्रता के प्रश्न पर माथापच्ची किया करते थे। उन दिनों यह फैशन था।