भारत वर्ष की प्राचीनतम सभ्यता हड़प्पा संस्कृति के निवासी एक देवी माता तथा अर्वरणशक्ति के एक श्रृंग युक्त देवता की उपासना किया करते थे। उनके पवित्र, पादप एवं पशु थे और उनके धार्मिक जीवन में प्रत्यक्ष रूप से कर्मकाण्डी अभिषेकों का महत्वपूर्ण स्थान था। सिन्धू घाटी सभ्यता के पश्चात् वैदिक युग में आर्यों ने जब बाह्य जगत् के साथ सम्पर्क किया तो उन्होंने प्रकृति की बाह्य शक्तियों को कार्य करते देखा, जिनसे वे कुछ भयभीत हुए और कुछ प्रभावित भी हुए। इन प्राकृतिक शक्तियों को वैदिक लोगों ने देवता माना और इन देवताओं की पूजा करने लगे। वैदिक लोग सुख-दुखः, आत्मा-परमात्मा, अजर-अमर, इहलोक-परलोक के ज्ञान के इच्छुक थे। इसके लिए और परम सुख की प्राप्ति के लिए विभिन्न देवी-देवताओं की स्तुति प्रारम्भ कर दी वैदिक साहित्य में उल्लेख मिलता है कि आर्यों ने जीवन मरण की गुत्थी सुलझाने के लिए पूनर्जन्म के सिद्धान्त का भी विकास किया। इस तरह आर्यों ने सांसारिक पहेलियों को समझने की चेष्ठा प्रारम्भ कर दी थी।