Article Details

शिक्षा के सन्दर्भ में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के शैक्षिक विचारों का अध्ययन | Original Article

सत्येन्द्र कुमार गौड*, डॉ. निर्मला राठौड, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

शिक्षा व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों को विकसित करने की प्रक्रिया है। अतः शिक्षा एक गतिशील प्रवाह और जीवन का अनिवार्य अंग है और व्यक्ति शिक्षा के अनुपम व अद्भूत प्रकाश में ही अपने जीवन को अलोकित करता हुआ जीवन की तमाम विषमताओं पर सफलतापूर्वक विजय हासिल करता है। शिक्षा के ही द्वारा समाज अपनी संस्कृति की रक्षा करता है। इस प्रकार जीवन की उदारता, उच्चता सौन्दर्य एवं उत्कृष्टता शिक्षा द्वारा ही संभव है। कमेनियस के अनुसार -‘‘ शिक्षा सम्पूर्ण मानव का विकास है। सर्वविदित हैं कि गुफाओं और कन्दराओं में रहकर वन्य जीवन व्यतीत करने वाले मानव ने अपने बुद्धि, विवेक तथा शिक्षा के बल पर अपने आदिम अवस्थाओं से उत्तरोत्तर विकास कर महान सामाजिक संगठनों और संस्कृतियों का सृजन कर सकने में सक्षम हुआ हैं तथा ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में आशातीत सफलताएँ अर्जित की हैं । फलतः आज 21 वीं सदी में मानव अन्तरिक्ष, चन्द्रमा तथा मंगल ग्रह तक पहुचने में सफल हो सका हैं। मानव सभ्यता के उद्भव और विकास तथा संस्कृति के निर्माण में शिक्षा का सराहनीय योगदान रहा हैं। शिक्षा व्यापक अर्थ में, जिसमें जीवन-पर्यन्त शिक्षा की धारणा शामिल है, मुल्यों के निर्धारण में सबसे सशक्त माध्यम हैं। जिसमें परम्परा और नवीनता का समन्वय हो, परम्परागत ज्ञान और विवेक के नवीनीकरण और व्यवहार की प्रगतिशील प्रणाली द्वारा एक नया समाज खास तौर से विकासशील दुनिया में उभर कर सामने आये। महान शिक्षक जा. पियाजे के अनुसार ‘‘ शिक्षा का प्रमुख कार्य ऐसे मनुष्य का सृजन करना है जो नये कार्य करने में सक्षम हो शिक्षा से सृजन, खोज आविष्कार करने वाले व्यक्ति का निर्माण होना चाहिए।’’ शिक्षा को त्वरित आर्थिक विकास और प्रौद्योगिकीय प्रगति प्राप्त करने और स्वतंत्रता, न्याय व समान अवसर के मूल्यों पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करने का महत्वपूर्ण कारक स्वीकार किया गया। सामाजिक सांस्कृतिक गतिशीलता के प्रमुख संचालक के रूप में शिक्षा की भूमिका उस समय बहुत स्पष्ट होती हैं जब समाज औद्योगिकरण के मार्ग पर अग्रसर होता हैं।