Un Logon Ki Bhasha Aur Prakriya Sab Asabandh Ho-E Bina Kisi Kavya Kalpna Ke Andher Nagri Ka Prahasan Khel |
अंधेरनगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा॥ नीच ऊँच सब एकहि ऐसे। जैसे भड़ुएपंडित तैसे॥ कुल मरजाद न मान बड़ाई। सबैं एक से लोग लुगाई॥ जात पाँत पूछै नहिं कोई। हरि को भजेसो हरि को होई॥ वेश्या जोरू एक समाना। बकरी गऊ एक करि जाना॥ सांचे मारे मारे डाल। छली दुष्ट सिर चढ़ि चढ़ि बोलैं॥ प्रगट सभ्य अन्तर छलहारी। सोइ राजसभा बलभारी ॥ सांच कहैं ते पनही खावैं। झूठे बहुविधि पदवी पावै ॥ छलियन के एका के आगे। लाख कहौ एकहु नहिं लागे ॥ भीतर होइ मलिन की कारो। चहिये बाहर रंग चटकारो ॥ धर्म अधर्म एक दरसाई। राजा करै सो न्याव सदाई ॥ भीतर स्वाहा बाहर सादे। राज करहिं अमले अरु प्यादे ॥ अंधाधुंध मच्यौ सब देसा। मानहुँ राजा रहत बिदेसा ॥ गो द्विज श्रुति आदर नहिं होई। मानहुँनृपति बिधर्मी कोई ॥ ऊँच नीच सब एकहि सारा। मानहुँब्रह्म ज्ञान बिस्तारा ॥ अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा ॥